सुप्रीम कोर्ट ने सागर जेल में बंद श्रद्धानंद के मामले में कहा, मुजरिम अपनी सजा खुद तय नहीं कर सकता
मृत्यु पर्यन्त जेल के मामले में पुर्नविचार पर सहमति जताई
सागर। कर्नाटक के दशकों पुराने हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। 30 साल से सजा काट रहे 84 साल के दोषी के बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सजा तय करना दोषी का अधिकार नहीं है। मामला पत्नी की हत्या के मामले में बीते 30 साल से केंद्रीय जेल सागर में कैद की सजा काट रहे स्वामी श्रद्धानंद की याचिका से जुड़ा है। जिसमें श्रद्धानंद के वकील नेअदालत के सामने कहा कि फांसी की सजा, मौत होने तक जेल की सजा काटने से बेहतर है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दोषी को क्या सजा दी जाएगी, ये तय करना उसका अधिकार नहीं है। 84 साल के स्वामी श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा पत्नी की हत्या के मामले में 30 साल से जेल की सजा काट रहे हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उनसे पूछा कि क्या वे सजा को फांसी में बदलना चाहते हैं ?
इस सवाल पर श्रद्धानंद के वकील ने कहा कि उन्हें मौत होने तक कैद की सजा दी गई जो फांसी की सजा से भी बदतर है। इस पर दोषी की ओर से पेश वकील वरुण ठाकुर से कोर्ट ने पूछा, क्या आपने अपने मुवक्किल से बात की है? वकील ने जवाब दिया कि
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मैंने उनसे बात नहीं की है। वकील के मुताबिक श्रद्धानंद को दी गई सजा, तत्कालीन कानून- भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत नहीं थी। दोषसिद्धि न्यायिक स्वीकारोक्ति पर आधारित थी। 
भी कई रिपोर्ट सामने नहीं आई है। उसे सर्वश्रेष्ठ कैदी के लिए पांच पुरस्कार भी मिले हैं। ऐसी स्थिति में, सवाल यह है कि क्या मुवक्किल अब भी वही व्यक्ति है… जो अपराध के समय था। वर्तमान स्थिति में 84 साल की आयु में लगातार 30 साल से जेल में होना मौत की सजा से भी बदतर हो सकता है। उन्होंने तर्क दिया कि यह यातना से भी अधिक है। वकील ने कहा कि अगर संभव हो तो आज की तारीख में दोषी के लिए फांसी एक बेहतर स्थिति हो सकती है।” जस्टिस बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीके मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की तीन जजों वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के दोषियों को समयपूर्व रिहा किए जाने की दलील भी दी गई। हत्याकांड में दोषी पाए गए कुछ दोषियों को भी आजीवन कारावास की सजा हुई थी, लेकिन अदालत के आदेश के बाद उनकी समयपूर्व रिहाई हुई है। दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने जेल से रिहाई के अनुरोध वाली रिट याचिका खारिज कर दी। हालांकि, अदालत 2008 में
पारित आदेश की समीक्षा के लिए सहमत हो गई। इसमें कोर्ट ने निर्देश दिया गया था कि श्रद्धानंद को शेष जीवनकाल तक जेल से रिहा नहीं किया जाएगा। पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताते हुए कर्नाटक राज्य और अन्य से जवाब मांगा है। पीठ ने याचिका पर सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की है।



