प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही सागर के कोल्ड ब्लडेड मर्डरर श्रद्धानंद की कहानी
डान्सिंग ऑन द ग्रेव के चार एपिसोड में बताई देश के सबसे चर्चित मर्डर कांड की कहानी
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सागर। केंद्रीय जेल सागर में बंद क्रूरतम हत्यारे मुरली मनोहर मिश्रा उर्फ स्वामी श्रद्धानंद निवासी बड़ा बाजार की कहानी आज भारत समेत दुनियाभर में पहुंच गई। शुक्रवार को इंडिया टुडे ओरिजनल्स और ओटीटी चैनल अमेजन प्राइम वीडियो पर इस हत्याकांड को चार एपिसोड की सीरिज डान्सिंग ऑन द ग्रेव (कब्र पर नाच) नाम से स्ट्रीम किया गया। डॉक्युमेन्ट्रीनुमा इन एपिसोड में मृतका शकीरेह नमाजी खलीली के युवावस्था से लेकर उसकी भयावह मौत के बारे में बताया गया है।

इस सीरिज में इंडिया टुडे की टीम द्वारा केंद्रीय जेल सागर में बंद स्वामी श्रद्धानंद से चर्चा के भी अंश हैं। जिनमें वह खुद को निर्दोष बता रहा है। जिन लोगों ने भी श्रद्धानंद के 30 साल पुराने इस भयावह हत्याकांड के बारे में नहीं पढ़ा-सुना। उनके लिए सागर वाणी डेस्क यहां कुछ सामग्री परोस रही है। जिसमें शकीरेह से श्रद्धानंद की मुलाकात, विवाह, हत्या की वजह और तीन साल बाद उसके खुलासे के बारे में बताया गया है। इस लेख के साथ इस घटनाक्रम के कुछ किरदार के फोटोग्राफ समेत प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हुई सीरिज “डान्सिंग ऑन द ग्रेव” के प्रोमो की लिंक भी मिलेगी।

चरणों में बैठने वालेे ने पुत्र का लालच देकर बरगला दिया
स्वामी श्रद्धानंद और मृतका शकीरेह खलीली की यह कहानी 1980 के दशक के शुरुआत की है। शकीरेह, बंगलुरु के एक शाही परिवार की सदस्य थी। उनके नौकरशाह पति अकबर खलीली बतौर उच्चायुक्त विदेश में पदस्थ थे। खलीली दंपती की चार बेटियां थीं। श्रद्धानंद से वर्ष 1982 में शकीरेह दिल्ली में पहली बार मिली। तब श्रद्धानंद, श्रद्धानंद न होकर मुरली मनोहर मिश्रा हुआ करता था। वह रामपुर के शाही परिवार के जमीन-प्रापर्टी के मामालों को निपटा रहा था।
रामपुर का परिवार उसे जमीन, सीलिंग एक्ट और टैक्स संबंधी विवादों का एक्सपर्ट मानता था।खलीली दंपती भी इसी समस्या से गुजर रहे थे। उन्हें मिश्रा जैसे शख्स की आवश्यकता थी। उन्होंने तुरंत उसे ऑफर दिया कि वह हमारी प्रॉपर्टी का काम भी देख ले। कुछ समय बाद मिश्रा बंगलुरु पहुंच गया। उसने शकीरेह को बताया कि मैंने रामपुर वाले शाही परिवार की नौकरी छोड़ दी है। इधर शकीरेह के पति अकबर ईरान के उच्चायुक्त हो गए। वे पत्नी को साथ नहीं ले गए। बस, यहीं से मुरली मनोहर ने अपना जादू शकीरेह पर चलाना शुरु कर दिया। स्वभाव से चाटूकार और बड़बोला मुरली मनोहर शकीरेह के पैरों बैठता और प्रापर्टी का लेखा-जोखा बताता। इसी बीच उसने स्वयं को तांत्रिक बताना शुरु कर दिया। उसने शकीरेह के मन में बेटे की चाहत जगा दी। उसे भरोसा दिलाया कि मेरी तंत्र क्रिया से वह बेटे की मां बन सकती है।
श्रद्धानंद से शादी की, बदले में तड़फ-तड़फ के मिली मौत
शकीरेह धीरे-धीरे अपने पति से दूर होती जा रही थीं। उन्होंने युवा हो चुकी बेटियों का भी ख्याल नहीं करते हुए पति अकबर खलीली को 1984 के आखिर में तलाक दे दिया। चंद महीने बाद 1985 में उन्होंने स्वामी श्रद्धानंद से कोर्ट मैरिज कर ली। शुरुआत के तीन-चार साल यह दंपती बड़े मजे से रहा। दुनिया भर का टूर किया।7 -स्टार होटलों में रुके। इस दौरान प्रॉपर्टी की देखरेख के नाम पर शकीरेह ने श्रद्धानंद के नाम पर पूरी संपत्ति की पॉवर ऑफ अटॉर्नी लिख दी। जो करीब 6000 करोड़ रुपए की थी। इधर शकीरेह की मुलाकात अपनी चार बेटियोंं में से दूसरे नंबर की सबा से होती रहती थी। उसके जरिए वह अब दोबारा अपनी बाकी तीन बेटियों व पूर्व पति अकबर खलीली की तरफ झुकने लगी थी। दूसरी ओर वह संतान के रूप में पुत्र को नहीं पा सकी थी। इन्हीं सब हालात में शकीरेह ने अपनी संपत्ति की नई वसीयत तैयार की। जिसमें उसने अपनी सारी प्रॉपर्टी चारों बेटियों के नाम कर दीं। जिसकी खबर श्रद्धानंद को मिल गई। उसने शकीरेह की रिचमंड रोड बंगलुरु स्थित महलनुमा कोठी में नया बाथरूम बनवाने के नाम पर टैंकनुमा गड्ढा खुदवाया। शकीरेह इस सब को सामान्य सिविल वर्क मान रही थी। फिर 28 मई 1991 को जब घर में इक्का-दुक्का नौकर थे। तब श्रद्धानंद ने शकीरेह को कॉफी में नींद की दवा दे दी। जैसे ही शकीरेह गहरी नींद में गई। उसने शकीरेह को एक कालीन में लपेटा और गड्ढे में पहले से मौजूद ताबूतनुमा बॉक्स में डाल दिया। इसके बाद उसने ऊपर से कुछ मिट्टी डाल दी। अगले दिन मजदूरों को बुलाया और कहा कि बाथरूम बनवाने का प्लान कैंसिल कर दिया है। इस गड्ढे को भरकर फ्लोरिंग कर दो। चंद दिन में ही यह काम पूरा हो गया। बताया जाता है कि इस फ्लोर पर ही श्रद्धानंद ने कई शराब-डांस पार्टियां की। जो बाद में मीडिया में “डान्सिंग ऑन द ग्रेव “के नाम से काफी चर्चित हुआ।

बेटियों से बोला मां विदेश में है, तुम लोग से बात करेंगी तो बेटा नहीं होगा
शकीरेह की अपनी बेटी सबा से लगभग रोज बात होती थी। लेकिन 28 मई 1991 के बाद उसकी कोई बात नहीं हुई। सबा उस समय मुंबई में मॉडलिंग कर रही थी। वह कुछ दिन बाद बंगलुरु पहुंची। जहां उसने श्रद्धानंद से इस बावत पूछताछ की। जवाब मिला कि तुम्हारी मां कच्छ में किसी डायमंड मर्चेन्ट के पास जमीन के सौदे के लिए गई हैं। फिर पूछा तो बोला कि तुम्हारी मां, अमेरिका के रूजवेल्ट के अस्पताल में हैं। वह प्रेग्नेन्ट है। तुम लोगों से बात करने के लिए मना किया है। तुम लोग भी बात मत करो। उन्हें डर है कि तुम लोगों से बात करेंगी तो उनके गर्भस्थ शिशु के लिए खतरा होगा। इस तरह के बहानेबाजी में एक साल गुजर गया। अब शकीरेह की बेटियों का सब्र टूटने लगा था। जून 1992 में उन्होंने बंगलुरु के अशोकनगर थाने में शकीरेह की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी।

शराब के ठेके पर हुआ मर्डर का खुलासा, कालीन पर मिली नाखुन की सैकड़ों खरोंचें
शकीरेह की संगत में श्रद्धानंद बंगलुरु का एक प्रभावशाली व्यक्ति बन चुका था। पुलिस उससे सीमित पूछताछ ही कर पा रही थी। मामला ठंडे बस्ते में जाता दिख रहा था कि मार्च 1994 में बंगलुरु क्राइम ब्रांच के एक सिपाही महादेव को मुखबिर से सूचना मिली कि शहर की स्लम बस्ती में रहने वाले दो युवक आजकल खूब दौलत लुटा रहे हैं। जबकि वे कोई खास काम नहीं करते। महादेव ने जानकारी ली तो पता चला कि ये लोग तो श्रद्धानंद के घरेलू कर्मचारी हैं। सिपाही ने भेष बदल इन लोगों से दोस्ती कर ली।फिर जब-तब शराब के ठेके पर मुलाकातें करने लगा। ऐसे ही एक दिन महादेव ने इन युवकों को उकसाया तो वह बोला कि पुलिस फिजूल परेशान हो रही है। शकीरेह कहीं नहीं गुमी। उसे तो श्रद्धानंद ने उसके ही घर में गाड़ दिया है। पुलिस ने मौका देख इन युवकों को दबोच लिया तो उन्होंने वह स्पॉट बता दिया जहां शकीरेह दफन थी। पुलिस श्रद्धानंद को हिरासत में लेकर

रिचमंड रोड स्थित कोठी में पहुंची। देश में पहली बार किसी मर्डर कांड में वीडियोग्राफी का उपयोग करते हुए वह फ्लोर खुदवाया। देखा कि एक ताबूत है, जिसमें एक कंकाल है। बेटियों व बहन ने कंकाल की अंगुलियों में पहनी अंगूठियों से पहचान लिया कि वह शकीरेह है। पुलिस ने देखा कि अंगुलियां व कलाई कालीन में बुरी तरह से उलझे हुए हैं। कालीन में सैकड़ों खरोंचे हैं। इससे साबित होता है कि शकीरेह ताबूत में जिंदा थी। उसने बाहर आने के लिए संघर्ष किया होगा। आखिर में उसकी तड़फ-तड़फकर मौत हो गई। श्रद्धानंद को पुलिस ने गिरफ्तर कर लिया। वर्ष 1998 में इस केस की सुनवाई शुरु हुई। मई 2005 में उसे फांसी की सजा सुनाई गई। सितंबर 2005 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने सजा की पुष्टि कर दी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जहां जुलाई 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सजा को मृत्यु पर्यन्त कारवास में बदल दिया। श्रद्धानंद करीब 4 साल बंगलुरु जेल में रहा। इसके बाद उसने कोर्ट से मांग की, कि मैं अपने जीवन के आखिरी साल अपने जन्म स्थान पर गुजारना चाहता हूं। कोर्ट ने उसकी मांग स्वीकार कर उसे केंद्रीय जेल सागर में शिफ्ट कर दिया। जानकारी के अनुसार वर्ष 2014 में उसने उम्र दराज होने व निर्दोष होने का हवाला देते हुए बाकी सजा माफ करने की याचिका दाखिल की। जो दिसंबर 2022 में स्वीकार हुई। जनवरी 2023 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीवगांधी के हत्यारों की सजा खत्म करने के मामले का उदाहरण देते हुए उसने सुप्रीम कोर्ट के वकील वरुणसिंह ठाकुर के माध्यम से एक और आवेदन दिया।
10 फरवरी 2023



