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भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के पद पर सेंधमारी की कोशिश में ‘महाराज’

सागर वाणी डेस्क
सागर। ज्यों-ज्यों चुनाव की बेला नजदीक आएगी, त्यों- त्यों नेतागणों की बौखलाहट बढ़ेगी। पार्टी के सर्वे में बहुतों की रिपोर्ट संतोषजनक नहीं है। कुछ को टिकट कटने की चिंता खाए जा रही है। इनमें वे माननीय हैं जिन्होंने सत्ता के स्वर्णकाल को जनकल्याण के बजाए मलाई जीमने में किया। कतिपय तो ऐसे हैं कि वे मंत्रिमंडल में फेरबदल की आस लगाए हैं, और आखिरी महीनों में अपने आगे मंत्री का विरुद लगवा लेना चाहते हैं, चूंकि जानते हैं कि क्या पता अक्टूबर के बाद सत्ता तो लौटे पर टिकट और सीट न लौटे। इसलिए हाईकमान पर दबाव बनाने, गुमराह करने का जोखिम लेने से भी नहीं चूक रहे। संगठन पर चोट करना है तो संगठन की सबसे विश्वसनीय कड़ी पर प्रश्न खड़े करने की कोशिश हुई। लेकिन भाजपा के शीर्ष नेता इन हथकंडों को समझ नहीं सकेंगे ऐसा समझना भी संबंधितों की मूर्खता ही है। 

महाराज को अध्यक्ष बन दरबार मजबूत करना है
बड़े खेल भी होते हैं। इंदौर से खबर आई है कि कांग्रेस से अपने दरबार सहित भाजपा में पधारे महाराज की निगाह अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर है। जबकि प्रदेश अध्यक्ष पद पर महत्वपूर्ण दिशाओं से नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह का नाम सामने आ गया है। महाराज खेमा जानता है कि चुनावी बेला में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का पद करामाती सिद्ध हो सकता है। मूल भाजपा को छोटा करने और खुद की दरबारी भाजपा को बढ़ाने के लिए प्रदेश अध्यक्ष का पद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इसलिए महाराज के दरबारियों ने मोर्चा खोल दिया है। रहस मेला में आकर सिंधिया गुटबाजी की गोटियां सेट करके गये थे। उस दिन की अखबारी सुर्खियां स्मरण करिए। ‘गोविंद-गोपाल की जोड़ी के साथ मैं हमेशा खड़ा हूं -सिंधिया’। तो यह दरबारी मेला नया गठजोड़ बना कर एक मंत्री की शिकायत लगाने सत्ता व संगठन की ड्योढ़ी पर जा पहुंचा। जो उनके ही बचे – खुचे जनाधार में और घटोत्तरी कर सकता है। 

सबसे घातक रोल जिलाध्यक्ष सिरोठिया निभा गए
सबसे घातक रोल तो सागर के भाजपा जिला अध्यक्ष का है। वे भी इस नये दरबारी गठजोड़ के हिस्से बन कर उलाहना देना वालों के संग चले गए। भूल गए कि जिला अध्यक्ष का पद सबको साथ लेकर चलने वाली जिम्मेदारी का होता है न कि गुट विशेष के साथ चलने का। यदि सबसे बड़े अखबार की खबर को सही मानें तो शिकायती दरबारियों के साथ जाकर गौरव सिरोठिया ने अपनी जिला अध्यक्षी के पद में निहित कार्यकर्ताओं का विश्वास और साख खो दी है। देर शाम तक उनका खंडन नहीं आया। वे अपने गृहनगर बीना की सीट अनुजाति के लिए सुरक्षित होने से 160 किमी दूर देवरी विधानसभा क्षेत्र पर कूद लगाने की मंशा पाले हुए हैं। ऐसे में नैतिकता तो यह बोलती है कि साफ घोषणा करें कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे बल्कि जिला भाजपा अध्यक्ष के रूप में अपने नेतृत्व में सबको चुनाव लड़वाएंगे। और यदि घटिया गुटबाजी का मोहरा बन कर खुद सत्ता का हिस्सा बनने की ख्वाइश बलबला ही रही है तो समय रहते अध्यक्ष पद से स्वेच्छा से इस्तीफा देकर हट जाएं और कहीं से टिकट की दावेदारी करें। चुनावी महीनों में सिरोठिया संगठन की आड़ में जो कर रहे हैं उसे सरल शब्दों में अनुशासन हीनता कहते हैं।
भार्गव समझदार, विधायक “बग्घी के घोड़े” बन बैठे
इस मामले में वरिष्ठ मंत्री भार्गव ने समझदारी दिखाई। उन्होंने सुबह ब्रश करने के तत्काल बाद खुद को इस झमेले से बाहर खींच लिया। वैसे तो दोनों विधायक भी वरिष्ठों की केटेगरी में आ गए हैं लेकिन वे ये नहीं समझ पा रहे कि स्वयं की ताजपोशी की गुंजाइशें धूमिल कर महाराज की बग्घी के घोड़े बन रहे हैं। जबकि इन घोड़ों को भाजपा ” डॉर्क हॉर्स ” मानती है।






