विवि: मानव शास्त्र विभाग के साहित्यिक चोरी विवाद की जांच कमेटी बनी! प्रशासन का इनकार
विवि की इस अतिरेक गोपनीयता के कारण कमेटी के औचित्य पर उठ रहे सवाल,जिन्हें जांच का जिम्मा सौंपा, उन्हें यही नहीं बताया कि जांचना क्या है

sagarvani.com9425172417. सागर। डॉ. हरीसिंह गौर विवि के मानव शास्त्र विभाग की प्लेगेरिज्म (साहित्यिक चोरी) संबंधी शिकायत को लेकर एक जांच कमेटी का गठन किया गया! जिसमें लखनऊ, इलाहाबाद और दक्षिण भारत के तिरूपति शहर के विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर्स को शामिल किया गया है। यह तीनों मानव शास्त्र विभाग से हैं। दूसरी ओर जाने क्यों विवि प्रशासन इस कमेटी के बारे में अनजान बना हुआ है। सागरवाणी डॉट कॉम ने विवि के प्रभारी पीआरओ डॉ. विवेक जायसवाल से इस बारे में पूछा तो उनका कहना था कि इस प्रकरण की शिकायत विवि के संज्ञान में है। नियम व प्रक्रिया तहत उसका निराकरण किया जा रहा है। जांच समिति के गठन के बारे में
कोई जानकारी नहीं है। विवि की इस अतिरेक गोपनीयता के अपने ही मायने निकाले जा रहे हैं। अकादमिक गलियारों में चर्चा है कि केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के निर्देश पर जांच कमेटी भले गठित कर दी गई है। लेकिन उसकी रिपोर्ट पहले से तय कर ली गई है। सूत्रों के अनुसार इस कमेटी के असल सूत्रधार विवादित प्रोफेसर हैं। कुलपति और रजिस्ट्रार अन्य दो जिम्मेदार लोग हैं, जिन्हें इस बारे में जानकारी है।
न विवादित मेटेरियल का ब्योरा और न ही समय-सीमा का जिक्र !
सूत्रों के अनुसार इन तीन रिटायर्ड प्रोफेसर्स इस कमेटी का मेम्बर तो बना दिया गया। लेकिन उन्हें यह नहीं बताया गया कि डॉ. अजीत जायसवाल के कौन से शोध मेटेरियल में प्लेगेरिज्म तलाशना है। उन्हें ये भी नहीं बताया गया कि इस कमेटी को अपनी जांच कब शुरु और कब खत्म करनी है। विवि की यही चूक, इस कमेटी के खुलासे का कारण बनी। दरअसल इस गुप्त-गुप्त सी जांच कमेटी के बारे में विवि की अधिकांश अकादमिक बिरादरी को वास्तव में कोई जानकारी नहीं थी। वह तो इसका खुलासा, उन रिटायर्ड प्रोफेसर्स के फोन कॉल्स के कारण हुआ। जिनमें से किसी एक ने अपनी इसी समस्या के निदान के लिए विवि के कतिपय प्रोफेसर्स से
संपर्क किया और जांच कमेटी की बात सामने आ गई।
एक ही शोध को पहले 2015 में फिर 2018 में छपवाने का आरोप
यह मामला मानव शास्त्र विभाग के एचओडी डॉ. अजित जायसवाल से जुड़ा। जिन पर जून 2024 में सीबीआई के व्हिसल ब्लोअर अरविंद भट्ट ने साहित्यिक चोरी यानी प्लेगेरिज्म के आरोप लगाए थे। भट्ट का आरोप था कि प्रो. जायसवाल ने भारत की खरवार जनजाति पर एक शोध कार्य किया था। जिसे उन्होंने वर्ष 2015 में ग्लोबल जनरल ऑफ एन्थ्रोपलॉजी रिसर्च एवं वर्ष 2018 में ग्लोबल जनरल ऑफ इकोलॉजी एन्थ्रोपलॉजी में प्रकाशित कराया था। वर्ष 2015 में प्रकाशित शोध को उन्होंने ए स्टडी ऑन बॉडी मास इंडेक्स एंड प्रिवेंशन ऑफ क्रोनिक एनर्जी डिफिसिएन्सी अमंग अडल्ट खरवार ट्राइव्स ऑफ इंडिया और वर्ष 2018 में इसी शोध का शीषर्क, नेशनल एंड हेल्थ स्टेटस एवोल्युशन
ऑफ ट्राइव्स ऑफ उत्तरप्रदेश: एन एंथ्रोपोलीजिकल डाइमेन्शन से प्रकाशित कराया। भट्ट का कहना है कि प्रो. जायसवाल का यह कृत्य धोखेबाजी, जालसाजी एवं शोध नियमों के उल्लंघन के अंतर्गत आता है। भट्ट ने अपनी अगली शिकायतों में डॉ. जायसवाल पर अन्य शोध कार्य, शैक्षणिक मेटेरियल तैयार करने में भी प्लेगेरिज्म का सहारा लेने का आरोप लगाया था। उन्होंने इस बारे में स्थानीय पुलिस थाने से कुलपति और केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय तक शिकायत की थी।
23/08/2024



