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बस की हड़ताल खत्म: मंत्री, पूर्व मंत्री, अनुभवी विधायक सब तो थे फिर भी 11 दिन लग गए

सभी बस स्टैण्ड से बसें चलाने का निर्णय पारित

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सागर। जनता के विशुद्ध हित के निर्णय लेने में सागर के जनप्रतिनिधि कितने पंगु हैं। “जमीन से जुड़े” रहने का उन्हें कितना लोभ है। इसकी बानगी बसों की ये हड़ताल है। जिसे खत्म करने में 11 दिन खर्च हो गए। जो निर्णय चंद घंटे के भीतर लिया जा सकता था। उसके लिए 250 घंटे लगा दिए। हालांकि जिले के प्रभारी मंत्री और डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल बड़ी आसानी से इसकी जड़ में पहुंच गए। उन्हें पता चल गया कि वे कौन से “जमीनी नेता” हैं जिनके कारण ये शिफ्टिंग, हड़ताल शहर बंद के हालात बने। फिर उन्होंने वही किया जो बस स्टैण्ड की पहली या दूसरी बार की शिफ्टिंग के वक्त होना था।

 

वे एक के बाद एक जिले के उन विधायकों से मिले। जिन्हें इस निर्णय में शामिल ही नहीं किया गया था। वैसे वे (डिप्टी सीएम शुक्ल) पुराने बस स्टैण्डों को वापस चालू करने का निर्णय एकल रूप से पहले ही ले चुके थे। लेकिन उन्होंने “जमीन से जुड़े” जिले के कतिपय नेताओं की राजनीतिक जमीन न हिले। इसलिए उनसे मशविरा का शगल किया। वैसे प्रभारी मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने सागर वासियों को दूसरी बार अपना कायल बनाया है। इसका ब्योरा नीचे के पैरा में है।

इधर बस स्टैण्ड ट्रांसफर की इस कवायद के दुष्परिणामों पर भी बात किया जाना चाहिए। नए बस स्टैण्ड्स से बसों के संचालन को शहर की तरक्की की निशानी बताने वाले नेताओं- अफसरों को एकबारगी यहां के प्रमुख थोक- फुटकर बाजारों में जाना चाहिए। व्यापारियों से पूछना चाहिए कि ऐन त्योहार पर बसें बंद होने से उनके कारोबार की क्या गत हुई। निजी- सरकारी अस्पताल का डाटा देखना चाहिए कि इस अवधि में देहात तरफ से उपचार कराने वाले कितने मरीज घट गए। कितनों के इलाज का चक्र टूट गया। उन्हें स्कूल – कॉलेज जाकर टीचर्स से पूछना चाहिए कि आपके यहां कितने दिन से टीचर या विद्यार्थी गैर-हाजिर चल रहे हैं। आखिर में उन्हें उन मजदूर- किसानों के घरों तक जाना चाहिए। पूछना चाहिए कि राशन- दवा कितने दिन पहले से खत्म है। वरना “जमीन से जुड़े” रह फिर इसी तरह के किसी अफलातूनी आदेश/ प्लानिंग में जुट जाना चाहिए।

 

शुक्ल ने ही 10 साल पहले एस्सेल से पिंड छुड़ाया था

शहरवासी भूले ना हों तो प्रभारी मंत्री शुक्ल ने दूसरी बार सागर वासियों को बड़ी मुसीबत या कहें कि शासन – प्रशासन के अफलातूनी प्रयोगों से मुक्त कराया है। 10 पहले का टाइम याद करें। तब बतौर प्रयोग सागर शहर में एस्सेल नाम की एक प्राइवेट कंपनी को शहर की बिजली सप्लाई, बिल वसूली और मेन्टेनेंस का ठेका दे दिया गया था। जनता को इस कंपनी का काम पसंद नहीं आया। तीन मढ़िया पर धरना धरा गया। तब शुक्ल, राज्य के ऊर्जा मंत्री थे। वे आए और एस्सेल के साथ विद्युत मंडल के अनुबंध को खत्म करने की घोषणा की।

16/08/2024

 

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