कभी मोहर्रम के जुलूसों के अखाड़ों में मुस्लिम संग हिन्दू भी घुमाते थे लट्ठ
बुधवार को है मुसलमानों के मातमी त्योहार मोहर्रम का आखिरी दिन

sagarvani.com।9425172417 सागर। शहर में जगह- जगह मोहर्रम के जुलूस निकल रहे हैं। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद वाले इन मातमी आयोजनों का सागर में अपना धुंधला सा इतिहास है। धुंधला इसलिए कि ये जुलूस कुछ दशक से मुस्लिम समुदाय तक सीमित हो कर रह गए हैं। कभी इनकी संख्या बढ़ जाती है तो कभी घट जाती है। अपवाद स्वरूप पीली कोठी वाले बाबा साहब की सवारी है। जो लगातार सड़कों पर दिखती है। ये सवारी तहसीली के स्व. मदन यादव ( बाबा) को निरंतर आती रही और अब उनके बेटे को “बाबा साहब” आने लगे हैं।
बात इतिहास की हो रही है तो करीब तीन दशक पहले तक इस मौके पर निकलने वाले जुलूस में अखाड़े भी चला करते थे। जिनमें मुस्लिमों के साथ हिन्दू नौजवान कभी लट्ठ तो कभी तलवारबाजी के जौहर दिखाते थे। चीं बोलने की कगार पर दिख रहे आला दत्ता अखाड़ा, लिंक रोड कटरा बाजार का उस समय बड़ा नामचीन अखाड़ा हुआ करता था। हरी और लाल लंगोट बांधे पट्ठों को उस्ताज मरहूम आला दत्ता के बाद पहलवान हरि शंकर दुबे और उस्ताज हाजी सलाम कुश्ती, लट्ठ और तलवारबाजी के हुनर- दांव सिखाते थे। यह दौर ब्रह्म मुहूर्त की आरती और फजल ( सुबह करीब 5 बजे) की अजान की आवाज के साथ शुरु हो जाता था। वरिष्ठ फोटोग्राफर गोविंद सरवैया द्वारा उपलब्ध कराए गए ये फोटो इसकी गवाही देते हैं। दौर-ए-उम्र के असर के कारण काका सरवैया ये नहीं बता पाते हैं कि फोटो में दिख रही सवारी या अखाड़ा प्रदर्शन कब और कहां का है। लेकिन फोटो देख उनकी आंखों में कटरा बाजार, शुक्रवारी, सदर की सड़कों के ये दृश्य जरूर झूल जाते हैं। 
तो इसलिए घटते बढ़ते रहते हैं जुलूस?
पुलिस थाना कैन्ट की कामयाब दारोगाई कर चुके और हालिया डीएसपी का कहना है कि ज्यों – ज्यों समय बदला कतिपय मुस्लिम खासकर नौजवानों ने इन जुलूसों को कट्टरता, सांप्रदायिकता जाहिर करने का जरिया बना लिया। उदाहरण के लिए कोरोना काल से चंद साल पहले सदर में कुछ युवकों ने नवरात्र के दौरान एक आपत्तिजनक ऑडियो-वीडियो वायरल कर दिया। क्रिया की प्रतिक्रिया हुई लेकिन हालात कंट्रोल में आ गए। सोचा सब ठीक है। इत्तेफाक से इसी साल दशहरा और मोहर्रम एक ही दिन पड़ रहे थे। जिसका फायदा कतिपय लोगों ने उठाने की कोशिश की।
सालों बंदी से इस इलाके से मोहर्रम के 3 जुलूस निकलते थे लेकिन इस दफा थाने में 27 जुलूसों के परमिशन लैटर मुंशी की टेबिल पर थे। तंत्र सक्रिय किया तो पता चला वो लोग वही सोच रहे हैं। जिसका अंदाजा पुलिस लगा रही थी। डीएसपी ने बताया कि, इसका एक ही इलाज था। जुलूस की परमिशन न दी जाए। लेकिन यह भी ठीक ना था। फिर क्या सवारी वालों से सम्पर्क किया गया। उन्ही के तबके के इरादे और पुलिस की तैयारी के बारे में डिटेल में बताया गया। सवारी वाले राजी हो गए और शांतिपूर्ण ढंग से केवल एक जुलूस निकला। कुल मिलाकर मोटी बात ये है कि जिस तरह सनातनियों के जुलूस में कई खामियां आईं। उसी तरह मोहर्रम के ये जुलूस भी अछूते नहीं रहे। नतीजतन कभी अखाड़ा तो कभी पूरा जुलूस ही गायब होता रहा।
15/07/2024



