सागर के टाईगर रिजर्व में “जासूस” बनेंगे 6 गिद्ध !
पैरों में पहनाए गए रेडियो रिंग से मिलेगी गिद्धों के ठिकानों की जानकारी

sagarvani.com 9425172417 सागर के वन क्षेत्र में इस वर्ष 1300 से अधिक गिद्ध देखे गए हैं। जो 3 साल पहले वर्ष 2021 में महज 300 ही थे।
सागर। वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में गिद्धों के संरक्षण के लिए एक नया प्रोजेक्ट शुरु किया जा रहा है। इसके तहत गिद्ध की भारतीय प्रजाति ( इंडियन वल्चर) के 6 चूजों( बच्चों) को रिजर्व में एक वर्ष तक पाला जाएगा। इसके बाद उनके पैरों में रेडियो रिंग पहनाकर जंगल में छोड़ दिया जाएगा। रिजर्व के पाले यह गिद्ध, अपने स्थानीय समुदाय, जिसे कॉलोनी भी कहा जाता है। उसमें शामिल हो जाएंगे। जिसके बाद वन अमला रेडियो रिंग की मदद से टाईगर रिजर्व समेत आसपास के एरिया में गिद्धों की निगरानी कर सकेगा। इससे उनकी संख्या, आवास, भोजन, बीमारियों समेत अन्य तथ्यों के अध्ययन में भी मदद मिलेगी।
बोटियां खाने से लेकर मांस नोंचने की कराएंगे ट्रेनिंग
टाईगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एए अंसारी के अनुसार, उपरोक्त प्रयास गिद्धों के संरक्षण के तहत किए जा रहे हैं। दरअसल भारत सरकार के वल्चर एक्शन प्लान 2020- 2030 के तहत बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी, मुंबई देश के अलग-अलग हिस्सों में गिद्धों की केप्टिव ब्रीडिंग करा रही इसी कड़ी में भोपाल के वन विहार में गिद्धों की “इन हाउस ब्रीडिंग” करा कर चूजे तैयार किए जा रहे हैं। डॉ. अंसारी के अनुसार, वहां से 6 चूजे यहां टाईगर रिजर्व में लाए जाएंगे। फिर उन्हें, प्राकृतिक आवास में रहने वाले गिद्धों के संग रहने की ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके तहत उन्हें पहले बोटी-बोटी कर मांस खाना सिखाया जाएगा। इसके बाद मांस के बड़े पीस, फिर पूरा साबुत जानवर का शव नोंच – नोंच के खाने की ट्रेनिंग दी जाएगी। 
गिद्धों की गैर-मौजूदगी के मानव आबादी ने गंभीर परिणाम भोगे हैं
गिद्ध, विशुद्ध रूप से मांसाहारी होते हैं। कभी-कभी तो यह घंटे भर के भीतर शवों का पता लगा लेते हैं और खा लेते हैं। गिद्धों का पाचन तंत्र अत्यधिक अम्लीय होता है, जिससे मांस में मौजूद लगभग सभी बैक्टीरिया या वायरस मर जाते हैं। इस तरह से गिद्ध मृत मवेशी या अन्य जानवरों से फैलने से वाले बैक्टीरिया-वायरस को मनुष्य तक नहीं पहुंचने देते हैं। यही काम लकड़बग्घा, सियार या अन्य जानवर भी करते हैं लेकिन ये जानवर मानव की पहुंच में आ सकते हैं। जो कहीं अधिक खतरनाक हो सकता है। इसलिए मृत जानवरों की सफाई के लिए गिद्ध सबसे श्रेष्ठ विकल्प माने गए हैं। एक शोध के अनुसार गिद्धों की घटती संख्या का हमारा देश करीब दो दशक पहले काफी बड़ा खामियाजा भुगत चुका है। इस शोध के अनुसार कुत्तों ने बीमार मवेशियों को खाया। जिससे वह रैबीज ग्रस्त हो गए। इसके बाद उन्होंने मानव आबादी पर हमला करना शुरु कर दिया। वर्ष 1992-2006 तक इस समस्या के चलते 48,000 लोगों की मौत का अनुमान लगाया गया था। यदि गिद्ध पर्याप्त संख्या में अस्तित्व में होते तो इन मौतों को टाला जा सकता था।
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गिद्धों की संख्या में बढ़ोत्तरी का सबसे बड़ा कारण प्रतिबंधित दवा डायक्लोफेनिक का इस्तेमाल बंद करना रहा। पूर्व में मवेशियों को यह दवा दर्द निवारक के तौर पर दी जाती थी। बाद में उनकी मौत होने पर गिद्ध इन मवेशियों का मांस खाते थे। जिसके चलते तेजी से उनकी मौत होने लगीं। स्थानीय स्तर पर गिद्धों की संख्या में बढ़ोत्तरी का एक बड़ा कारण उनके रहवास वाले वृक्षों की एवं ऐसे पथरीले या चट्टानी स्थान जहां वह घोंसला बनाते हैं, उन तक मानव द्वारा किसी तरह की छेड़छाड़ या नुकसान नहीं करना रहा। तीसरा बड़ा कारण, रिजर्व में बाघ समेत अन्य मांसाहारी जानवरों की संख्या में वृद्धि होना रहा। उनके द्वारा किए गए शिकार के अवशेषों से इन गिद्धों का भरण-पोषण हुआ। बता दें कि गिद्ध प्रजाति की प्रजनन दर अन्य पक्षियों की अपेक्षा कम होती है। मादा गिद्ध वर्ष में एक बार में एक ही अंडा देती है।
13/07/2024



