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सागर के आसमान में सनसनी: सैन्य विमान की ‘लो-फ्लाइंग’ ने क्यों उड़ाई नींद, जानिए इसके नियम और अभ्यास की ज़रूरत

 

सागर, मध्य प्रदेश। शनिवार की दोपहर, सागर शहर और जिले के निवासियों के लिए आसमान अफवाहों का केंद्र बन गया। एक सैन्य विमान सामान्य से बहुत नीचे की ऊँचाई (Low Altitude) पर उड़ता हुआ दिखाई दिया, जिसने तुरंत लोगों के मन में तकनीकी खराबी आने का डर पैदा कर दिया। देखते ही देखते, यह खबर जंगल की आग की तरह सोशल मीडिया पर फैल गई कि विमान शाहगढ़ या खुरई क्षेत्र में क्रैश हो गया है। हालांकि, यह अफवाह पूरी तरह निराधार निकली। सूत्रों के अनुसार, यह विमान सुरक्षित रूप से ढाना स्थित चाइम्स एविएशन (Chimes Aviation) की हवाई पट्टी पर उतर गया। इस पूरे घटनाक्रम ने नागरिकों के मन में एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया: इतना नीचे उड़ान भरने की ज़रूरत क्यों पड़ी?

तकनीकी पक्ष: क्यों ज़रूरी है ‘लो-फ्लाइंग’ अभ्यास?

​सैन्य विमानों द्वारा किया गया यह अभ्यास, जिसे ‘लो-फ्लाइंग’ या ‘निम्न-ऊँचाई उड़ान’ कहा जाता है, किसी तकनीकी खराबी का संकेत नहीं था, बल्कि यह सेना के नियमित सैन्य उड़ान अभ्यास का एक हिस्सा था। पिछले कुछ दिनों से, बबीना (झांसी), ग्वालियर, और जबलपुर के आर्मी बेस द्वारा बड़े पैमाने पर सैन्य उड़ानों का अभ्यास किया जा रहा है। ‘लो-फ्लाइंग’ अभ्यास की ज़रूरत कई महत्वपूर्ण सामरिक कारणों से पड़ती है:

​दुश्मन के रडार से बचना (Radar Evasion): विमान जब बहुत नीची ऊँचाई पर उड़ते हैं, तो वे ज़मीन की संरचना (पहाड़, पेड़, इमारतें) की आड़ में आकर दुश्मन के रडार सिस्टम की पकड़ में आने से बच सकते हैं। युद्ध के दौरान यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण कौशल है।

​ज़मीनी लक्ष्यों पर सटीक हमला (Precision Strike): ज़मीन के करीब उड़ने से पायलट को लक्ष्य को अधिक स्पष्ट रूप से देखने और उस पर सटीक हमला करने का मौका मिलता है, खासकर जब ज़मीनी सेना को नज़दीकी हवाई सहायता (Close Air Support) प्रदान करनी हो।

​पायलटों का प्रशिक्षण (Pilot Training): पायलटों को हर तरह की ऊँचाई और मौसम की स्थिति में विमान उड़ाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। ‘लो-फ्लाइंग’ उन्हें जटिल और जोखिम भरी परिस्थितियों को संभालने के लिए तैयार करता है।

​’लो-फ्लाइंग’ के नियम और कायदे

​सैन्य अभ्यास के दौरान भी, ‘लो-फ्लाइंग’ मनमाने ढंग से नहीं की जाती है। इसके लिए कड़े सुरक्षा नियम और कायदे हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य होता है:

​न्यूनतम सुरक्षित ऊँचाई (Minimum Safe Altitude): नागरिक क्षेत्रों और सघन आबादी वाले इलाकों के ऊपर एक निश्चित न्यूनतम ऊँचाई बनाए रखना ज़रूरी होता है।

​पूर्व सूचना और समन्वय: बड़े अभ्यासों के लिए, आस-पास के हवाई अड्डों और एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) को पहले से सूचित किया जाता है, खासकर जब वे नागरिक हवाई क्षेत्र का उपयोग कर रहे हों।

​सुरक्षा कॉरिडोर: अभ्यास के लिए अक्सर ऐसे क्षेत्र चुने जाते हैं जहाँ आबादी कम हो, या फिर विशिष्ट ‘लो-फ्लाइंग कॉरिडोर’ निर्धारित किए जाते हैं।

​सागर में जो दिखा, वह इसी गहन सैन्य अभ्यास का परिणाम था। लोगों का कौतूहल और डर दोनों अपनी जगह सही थे—नीचे उड़ता विमान हमेशा ध्यान खींचता है, लेकिन यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि हमारी सेनाएं देश की सुरक्षा के लिए लगातार जटिल और चुनौतीपूर्ण अभ्यासों में जुटी रहती हैं।

04/10/2025

 

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