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बरोदिया नोनागिर की अंर्तकथा: सच ये है कि मीडिया के सामने बोलने पर पप्पू रजक को मृतक राजेंद्र व मृतका अंजना के भाई विष्णु ने पीटा था

कांग्रेसजन, राजेंद्र अहिरवार की मौत के असल कारण के पीछे क्यों नहीं जा रहे ?

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सागर। जो दिखाया जाए। जो सुनाया जाए। वह हमेशा सच नहीं होता। इसका सबसे सटीक उदाहरण खुरई के बरोदिया नोनागिर गांव में चल रहा घटनाक्रम है। जिसकी मूल जड़ में जाने की कोई कोशिश नहीं कर रहा। स्वयं को पीड़ित बताने वाले परिवार बड़ी आसानी से देश के दिग्गज कांग्रेस नेताओं को घुमा रहे हैं और वे घूम रहे हैं। शायद ये नेतागण अपनी मर्जी से ऐसा कर रहे हों।

बहरहाल इस घटनाक्रम को कथित पीड़ित परिवार पिछले साल अगस्त में हुई नितिन उर्फ लालू अहिरवार की हत्या से जोड़कर बता रहे हैं। उनका कहना है कि चार दिन पहले जिस राजेंद्र अहिरवार की हत्या हुई। वह लालू अहिरवार की हत्या के मामले में पीड़ित पक्ष का गवाह था। उसे रोकने के लिए कतिपय लोगों ने उसकी हत्या कर दी। जबकि सच्चाई ये है कि राजेंद्र अहिरवार की हत्या की वजह, वह खुद और उसका दूर का रिश्तेदार भतीजा विष्णु अहिरवार है। दरअसल ताजा घटनाक्रम की जड़ में जाने के लिए हमें करीब 8 महीने पीछे जाना होगा। अगस्त 2023 में गांव के लोगों सामूहिक हमलाकर विष्णु और मृतक युवती अंजना अहिरवार के छोटे भाई नितिन उर्फ लालू अहिरवार की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी।

मृत युवती अंजना अहिरवार।                                              लालू की मौत के बाद उसकी बहन उसे एक साधारण युवक बता रही थी। जिसकी गांव के दबंगों ने एकराय होकर हत्या कर दी। इसी की तह में जाने के लिए कुछ मीडयाकर्मियों ने गांव के अलग-अलग लोगों से चर्चा की। तब गांव के पप्पू रजक उम्र करीब 52-53 वर्ष ने मीडिया के सामने बड़ा खुलकर बताया था कि लालू गांव में गुंडागर्दी करता था।
घायल पप्पू रजक , जिस पर मृतक राजेंद्र ने 8 महीने पहले जानलेवा हमला किया था।

उसकी हत्या किसी परिवार विशेष ने नहीं, पूरे गांव के लोगों उसके अत्याचार, आतंक से तंग आकर की है। जो लालू के पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार बहुत हद तक सही भी थी।(इस रिपोर्ट के साथ पप्पू रजक की तत्कालीन मीडिया बाइट भी ऊपर अटैच है) इधर इस बाइट को देखने-सुनने के बाद मृतक लालू का परिवार व उसका दूर का रिश्तेदार राजेंद्र अहिरवार उससे रंजिश रखने लगे। जिसके परिणामस्वरूप इन लोगों (राजेंद्र और विष्णु अहिरवार) ने दो महीने बाद अक्टूबर 2023 में एकराय होकर पप्पू रजक पर जानलेवा हमला कर दिया। पुलिस ने इस मामले में आरोपियों के खिलाफ मारपीट समेत धारा 326 का केस दर्ज कर लिया। जानकारी के अनुसार हाल ही में इस केस में पप्पू रजक के कोर्ट में बयान होना थे। जिसे रोकने के लिए राजेंद्र अहिरवार उसके घर गया। उसने एक बार फिर पप्पू पर प्राणघातक हमला किया।

स्टंट के कारण हुई अंजना अहिरवार की मौत ! क्योंकि भाई ने भी ऐसा किया था

बताया जाता है कि उसकी इस हरकत से पप्पू के परिजन समेत आस-पड़ोस के लोग उत्तेजित हो गए और उन्होंने राजेंद्र पर जवाबी हमला कर दिया। जिसके चलते उसकी चंद घंटों बाद मौत हो गई। यहां बता देना जरूरी होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतागण जिस, राजेंद्र अहिरवार के प्रति संवेदनाएं जता रहे हैं, वह एक आदतन अपराधी था। उसके खिलाफ दो-एक नहीं, पूरे 13 आपराधिक मामले थे। जबकि जिलाबदर की कार्रवाई कलेक्टर के समक्ष पेन्डिंग थी। राजेंद्र कुख्यात चोर था। उनमें से 9 केस तो केवल चोरी के दर्ज थे। बाकी मामलों में अड़ीबाजी, घर में घुसकर मारपीट करने आदि के थे।

और…..अंजना ने पप्पू का नाम क्यों नहीं लिखवाया ?

राजेंद्र अहिरवार की मौत के मामले में पुलिस ने अंजना अहिरवार की रिपोर्ट पर 5 लोगों के खिलाफ जानलेवा हमले का केस दर्ज किया था। जो अब हत्या के केस में तब्दील हो जाएगा। अब इन पांच लोगों की बात कर लें। अंजना ने जिन पांच लोगों के नाम लिखवाएं हैं। उनमें से आशिक कुरैशी और टंटू कुरैशी के सिवाए किसी का कोई भी आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। ये बात जरूर है कि इन आरोपियों के रिश्तेदार लालू की हत्या के मामले में जेल में हैं। साफ हो जाता है कि रिश्तेदारों को भी जेल भिजवाने के लिए अंजना ने उनके नाम राजेंद्र की हत्या की एफआईआर में जुड़वा दिए। इधर चर्चा है कि गांव से खदेड़े गए कतिपय अल्पसंख्यक परिवारों के युवक जो अब राहतगढ़, विदिशा और भोपाल तरफ अपनी आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं, उन्हीं के इशारे पर अंजना ने पप्पू रजक के बजाए इन युवकों के दुश्मन परिवार के नाम एफआईआर में दर्ज करा दिए। यह वही युवक हैं, जिनके लिए मृतक लालू अहिरवार, राजेंद्र अहिरवार आदि गुर्गों की तरह काम करते थे। इन्हीं लोगों के इशारों पर लालू, राजेंद्र, विष्णु वगैरह गांव में उत्पात मचाते रहते थे। इस घटनाक्रम को ऐसे भी समझना चाहिए कि स्वयं को पीड़ित बताने वाले इस परिवार के लोगों को गांव के सभी जाति के लोग क्यों मारने पर आमादा रहते हैं। ये लोग गांव के कोई सीधे-सादे किसान या मजदूर तो हो नहीं सकते। गांव में अहिरवार समेत अजा वर्ग के सैकड़ों और भी परिवार हैं। लेकिन उन्होंने कभी भी गांव के लोगों पर उत्पीड़न के आरोप नहीं लगाए। एक एंगिल ये भी है कि यह कथित पीड़ित परिवार ताजा घटनाक्रम से एक नजीर ये भी खड़ी करना चाहता है कि हम लोग गांव में उत्पात करेंगे। आपराधिक घटनाएं अंजाम देंगे। अगर किसी ने पुलिस या मीडिया के समक्ष मुंह खोला तो उसका अंजाम पप्पू रजक जैसा होगा। बच गए तो हाल राजेंद्र अहिरवार की हत्या में आरोपी बने लोगों जैसा कर दिया जाएगा। 

अंजना के घर आंसू बहाने वाले खुद के गिरेबां में झांके

पूरे घटनाक्रम का आकलन करें तो पता लगता है कि अंजना अहिरवार की मृत्यु के लिए वे नेता जिम्मेदार हैं जो हाईकमान की नजरों में लंबे समय तक डिफाल्टर होने का टैग हटाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। बताते हैं कि इन राजनैतिक तत्वों ने अंजना को चाचा के शव को सड़क पर रख कर चक्काजाम के लिए उकसाया। बावजूद इसके कि मृतक चाचा के परिजन और यहां तक कि अंजना के भाई और पिता भी चक्काजाम के लिए शव को रखने के विरोध में थे। लेकिन अंजना ने अपने कतिपय राजनैतिक मार्गदर्शकों के निर्देश की पूर्ति के लिए शववाहन रुकवाने का वह तरीका अपनाया जो उसके भाई ने गत वर्ष की घटना में अंजाम दिया था। यह तरीका था शववाहन से कूद जाने का। उस घटना में वाहन की गति आदि के कारण वह तो बच गया लेकिन अंजना सड़क से टकरा कर घातक रूप से घायल हुई और उसकी दुखद मृत्यु हो गई। वह कतिपय नेताओं के बजाए परिवार की मानती तो आज सकुशल होती। दुर्भाग्य और विडंबना देखिए कि अंजना के इस हश्र के जबावदारों को राजनैतिक रोटियां सेंकने के लिए एक और लाश मिल गई।

28/05/2024

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