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टाइगर रिजर्व में ”गौर-गाय” की बसाहट के लिए होगा सर्वे

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सागर। वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में गोवंशीय जानवर गौर, जिसे भ्रमवश जंगली भैंसा भी कहा जाता है, की बसाहट होगी। इसके लिए रिजर्व में ”गौर” के सर्वावाइव करने लायक पानी-भोजन व्यवस्था, रहवास क्षेत्र आदि का सर्वे कराया जाएगा। रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एए अंसारी के अनुसार यहां गौर के लिए बहुत अच्छा पर्यावरणीय माहौल है। नौरादेही और डोंगरगांव दो ऐसे रेंज हैं। जिनका संपूर्ण एरिया करीब 400 वर्ग किमी में फैला है। यहां बड़ी अच्छी मात्रा में कांस नाम की घांस हैं। बांस के भी झाड़ हैं। गौर का यही मुख्य भोजन है। डॉ. अंसारी के अनुसार मप्र के जंगल व संरक्षित वन्यप्राणी क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में गौर उपलब्ध हैं। वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व के लिए सतपुड़ा-पेंच टाइगर रिजर्व से गौर लाए जा सकते हैं। बड़ी घांस खत्म करने से छोटे जानवरों को भोजन मिलेगा  टाइगर रिजर्व में अभी कई ऐसे पैच हैं। जहां कई-कई किमी तक 5-6 फीट ऊंची तक घांस है। यह घांस हिरण समूह के अन्य जानवर नहीं खा पाते हैं। जबकि गौर इसे आसानी से खा कर खत्म कर देते हैं। यह घांस खत्म होने से इनकी जगह नईं कोंपल या छोटी घांस आएगी। जिसे चीतल, हिरण, काला हिरण आदि खा सकेंगे। बड़ी घांस खत्म होने से एक दूसरा फायदा टाइगर फेमिली को होगा। उन्हें अपने शिकार को खोजने व देखने में आसानी हो जाएगी। जो उन्हें पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के साथ-साथ आबादी बढ़ाने में कारगर साबित होगा। यहां बता दें कि बाघ, साधारणत: गौर का शिकार नहीं करते हैं। वे केवल उसके बछड़े यानी काफ को ही मारने में सक्षम होते हैं।

भारत में सबसे ज्यादा संख्या में मिलते हैं ”गौर”
गौर जिसे इंडियन बाइसन भी कहा जाता है। यह दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशिया मे पाया जाने वाला एक बड़ा, काले लोम से ढका गोजातीय पशु है। आज इसकी सबसे बड़ी आबादी भारत में पाई जाती हैं। गौर जंगली मवेशियों में से सबसे बड़ा होता है। गौर, की एक नस्ल को पालतू भी होती है। जिसे गायल या मिथुन भी कहा जाता है। जबकि इसे देश के अलग-अलग भागों में इसका भिन्न भिन्न स्थानीय नाम है, जैसे गौरी गाय, बोदा, गवली इत्यादि कहा जाता है। यह स्तनपोषी शाकाहारी पशु भारत के अलावा असम, बर्मा, मलाया समेत मध्य भारत और असम के पहाड़ी क्षेत्रों भी पाया जाता है।
गौर  और जंगली भैंसा में जमीन आसमान का अंतर
गौर को बोलचाल में जंगली भैंसा भी कहा जाता है। जबकि जंगली भैंसा, एक नजरिए से पालतु भैंस के कुल का जानवर है और ‘गौरÓ गाय के कुल से संबंधित है। सबसे बड़ी बात ये कि भारत से जंगली भैंसा कभी का लुप्त हो चुका है। इन तथ्यों के आधार पर गौर को जंगली भैंसा कहना गलत है। सुलभ संदर्भ के लिए स्टोरी के साथ अटैच किए गए फोटो देखें। यहां बता दें कि जंगली भैंसा सदैव भैंस जैसे काले रंग का रहता है।

जंगली भैंसा का परिवार                उसकी शारीरिक बनावट भी भैंस से 90-95 फीसदी तक मिलती जुलती है। जबकि गवली, गौर गाय या मिथुन अलग-अलग रंगों में पाया जाता है। गौर का रंग बचपन से वृद्धावस्था तक एक समान नहीं रहता, बल्कि बदलता रहता है। नवजात शिशु का रंग हल्का सुनहरा पीला होता है। अल्प काल के उपरांत यह रंग हल्का पीला और बाद में भूरा हो जाता है। वयस्क नर या मादा का रंग कॉफी जैसी ललाई लिए भूरा होता है। प्रौढ़ावस्था में यह रंग बदल कर काजल जैसा काला तथा शरीर निर्लोम हो जाता है। कपाल का रंग खाकी तथा पीलापन लिए और आँखों का रंग भूरा होता है। पैरों का रंग घुटने के कुछ ऊपर से लेकर नीचे खुर तक श्वेत होता है। साधारणत: गौर के परिवार में आठ या दस सदस्य होते हैं।      10/05/2024

 

 

 

 

 

 

 

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