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शोध: बीते 30 साल में जन्मे 0-5 वर्ष के बच्चों के स्वास्थ्य में गुणात्मक सुधार

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के डाटा से सागर विवि समेत अमेरिका, पोलेंड के मानव विज्ञानियों ने निकाला निष्कर्ष

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तीन दशक  में जन्में बच्चों में से 5 लाख से अधिक के स्वास्थ्य व पोषण संबंधी डाटा को किया गया प्रोसेस

सागर। भारत में बीते 30 साल (1992-2021) में जन्में 0-5 साल के नवजात, शिशु व बच्चों में से 5 लाख से अधिक के स्वास्थ्य व पोषण की स्थिति पर मानव विज्ञानियों ने एक महत्वपूर्ण शोध किया है। जिसका प्रकाशन हाल ही में प्रतिष्ठित यूरोपियन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रीशन में हुआ है। डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विवि के मानव विज्ञानी डॉ. राजेश गौतम और भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता के डॉ. प्रेमानंद भारती समेत अमेरिका, पोलेंड के मानव विज्ञानियों ने इस शोध को पूरा किया गया। इन सभी विद्वानों ने वर्ष 1992 से 2021 के बीच पांच राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षणों में उल्लेखित डाटा को अपने शोध का मुख्य आधार बनाया। विवि के डॉ. गौतम के अनुसार यह शोध अध्ययन इन बच्चों शरीर के भार, लंबाई यानी ऊंचाई और पोषण की स्थिति को रेखांकित करता है।

लड़के-लड़कियों के वजन और लंबाई बढ़ने का उम्र अलग-अलग

इस शोध में केवल 0-5 वर्ष तक के बच्चों के डाटा का उपयोग किया गया। जिसके अनुसार भारत में लड़के-लड़कियों का वजन बढ़ने की उम्र अलग-अलग रहती है। उदाहरण के लिए लड़के जब डेढ़-दो साल की उम्र के होते हैं तब उनका सबसे अधिक वजन 900 ग्राम तक बढ़ता है। जबकि लड़कियों का वजन 3-4 साल की उम्र के दौरान 1 किग्रा तक बढ़ता है। इसके उलट 0-6 महीने की आयु के लड़के का वजन 1.9किग्रा और लड़कियों का वजन 1.7 किग्रा तक बढ़ता है।

तीन से चार साल की उम्र के दौरान लड़कियों की लंबाई 5.5 और लड़कों की उम्र 5.2 सेमी बढ़ती है। कुल मिलाकर इस शोध के परिणाम बताते हैं कि भारत में बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। जिनका सीधा सरोकार आर्थिक और सामाजिक संदर्भ से है।

1991 के आर्थिक सुधारों से गरीबी दर में कमी आई

बच्चों के संदर्भ में किए गए इस शोध से यह परिलक्षित हुआ है कि 1991 में आर्थिक सुधारों के बाद गरीबी दर में कमी आई और जीवन स्तर में सुधार हुआ। इसके चलते भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2005 से 2010 के बीच 1.8 प्रतिशत से 2.7 प्रतिशत हो गई। 2010-2012 के बीच लगभग 85 मिलियन लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे। 2015-16 में 21प्रतिशत आबादी पोषण की दृष्टि से वंचित थी, जो 2019-21 में घटकर 11.8 प्रतिशत रह गई। स्वच्छता और आवास सुविधाओं में भी सुधार हुआ, 2015-16 में वंचित आबादी 21.1 प्रतिशत और 23.5 प्रतिशत थी, जो 2019-21 में घटकर 11.3 प्रतिशत और 13.6 प्रतिशत रह गई।

बाल्य कुपोषण मौजूद, खत्म करने निरंतर प्रयास आवश्यक

अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया कि भारत में बाल कुपोषण को पूरी तरह समाप्त करने के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं। मातृ एवं शिशु पोषण कार्यक्रमों को मजबूत बनाया जाए ताकि जन्म के समय कम भार और कुपोषण की समस्या को रोका जा सके। खाद्य सुरक्षा और विविध आहार सुनिश्चित करना ताकि बच्चों और गर्भवती महिलाओं को उचित पोषण मिले। सामाजिक-आर्थिक विकास नीतियों को सुदृढ़ करना ताकि स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और स्वच्छ पानी तक पहुंच बढ़ाई जा सके। पर्यावरण-अनुकूल खेती को बढ़ावा देना ताकि कृषि उत्पादन और खाद्य उपलब्धता को बढ़ाया जा सके।सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से पोषण संबंधी पूरक आहार प्रदान करना। सतत खाद्य सुरक्षा और पौष्टिक आहार के लिए जागरूकता बढ़ाना।निष्कर्ष यह भी दर्शाते हैं कि सरकारी प्रयासों को और सशक्त करने की आवश्यकता है ताकि भारत के बच्चों का भविष्य स्वस्थ और सुरक्षित बनाया जा सके।

 04/02/25

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