नए साल पर पढ़िए…100 साल पहले सागर की हिंदु-मुस्लिम सोच क्या थी !

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सागर। नए साल का मौका है। सुधी पाठकों व दर्शकों से अनुरोध है कि इस खबर या आलेख को ही सागरवाणी का शुभकामना संदेश मान लें। दरअसल ये खबर/आलेख करीब 100 साल पहले सन् 1927 में बांटे गए एक पैम्फलेट पर आधारित है। जिसमें शहर में हिंदु-मुस्लिम दंगा को रोकने संबंधी तैयारी व ताकीदें थीं। पैम्फलेट का मैटर बताता है कि हिंदु व मुस्लिम समुदाय के लोग किस तरह से कौमी बवालों को रोकने की पूर्व तैयारी करते थे। ये पैम्फलेट तत्कालीन हिंदु-मुस्लिम सुलह कमेटी ने जारी कराया था। नीचे इस पैम्फलेट का फोटो व अक्षरशः ब्योरा है। कमेटी में 5 हिंदु व 5 मुसलमान रसूखदार सदस्य रखे गए थे। आखिर में इस आलेख/ खबर को शुभकामना संदेश इसलिए कहा क्योंकि हम आशा करते हैं कि इस नए वर्ष में आप और हम अपने पूर्वजों- बुजुर्गों की तरह समझदारी व जवाबदेही बनाकर रखेंगे।
पैम्फलेट में जिन महानुभावों के नाम हैं। उनके बारे में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. अब्दुल गनी के सुपुत्र और कांग्रेस नेता अब्दल रफीक गनी ने यथा संभव जानकारी दी है। जिसका ब्योरा यूं है कि, पहला नाम रामकृष्णराव श्रीखंडे का है। वे सुबेदार वाड़ा लक्ष्मीपुरा में रहते थे। दूसरा नाम भगवानदास सरवैया का है। जो शहर के नामचीन प्रेस फोटोग्राफर गोविंद सरवैया के दादा हैं। तीसरा नाम एड. केशव रामचंद्र खांडेकर का है। आप तत्कालीन मशहूर वकील थे और बिट्रिश शासन की खिलाफत करने हुए जिले में सबसे पहले वकालत से इस्तीफा दे दिया था। खांडेकर मप्र के गांधी कहलाते थे। चौथा नाम केदारनाथ रोहण निवासी मछरयाई का है। ये भी वकील थे और इन्होंने भी अंग्रेजी शासन के विरोध में वकालत छोड़ दी थी।
पांचवा नाम देवेंद्रनाथ मुखर्जी का है। ये तीन मढ़िया स्थित लेक कॉटेज में रहते थे। आपने भी वकालत से इस्तीफा दे दिया था। छटवां नाम मौलवी चरागुद्दीन का है। मौलवी पहले कांग्रेस और बाद में मुस्लिम लीग के बड़े नेता थे। 1935 में जब गांधी जी सागर आए तो उन्होंने केशव रामचन्द्र खांडेकर के अलावा इन्हीं मौलाना चरागुद्दीन से मिलने की इच्छा जताई थी।
आजादी के बाद चरागुद्दीन पाकिस्तान शिफ्ट हो गए। सातवां नाम कादर बख्श का है। आप एक साधारण लेकिन देश भक्त परिवार से थे। कादर बख्श के बारे ज्यादा ब्योरा उपलब्ध नहीं है। आठवां नाम किन्ही एम अहमद साहब का है। ये मुस्लिम अखाड़े के उस्ताद थे। इनका निवास मछरयाई में सरस्वती मंदिर के पास था। नौंवा नाम शेख अहमद मछरयाई का है। जो संभवतः एक बीड़ी कारोबारी थे। बाद के वर्षों में वे सागर से अन्यत्र शिफ्ट हो गए थे। दसवां नाम चौधरी अब्दुल सत्तार का है। कसाई मंडी के पास रहने वाले चौधरी का मुस्लिम समुदाय में खासा रुतबा थे। बाद में चौधरी भी पाकिस्तान चले गए थे।
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हिन्दू-मुसलिम सुलह कमेटी
कुछ दिनों से शंहर में तरह-२ की खबरें फैल रहीं थी कि इस साल दशहरा जवारे पर हिन्दू मुसलमानों में बिना झगडा हुए न रहेगा इन सब बातों की जांच पडताल करने के लिये शहर के हर फिरके के मौतबिर हिन्दू मुसलमान साहबान की एक सभा तारीख ३० सितम्बर’ सन १९२७ ई० को की गई और उसमें तय हुआ कि जवारा दशहरा वगैरः जैसे अबतक मनाया जाता रहा है उसी तरह मनाया जावे व शहर में शांति रखने व तरह २ की खबरों से लोग बहककर लड़ न जावे इस वास्ते इन झूठे ख्यालों को मिटाने के लिये पांच हिन्दू और पांच मुसलमान साहवान की एक कमेटी बनाई गई है जो हर तरह से शांति रखने की कोशिश करेगी।
सब साहवान को इस कमेटी के मेंबरों को मदद देना चाहिये और जो अफवाहें शक शकूक व झगडे की बातें मालूम हों उन्हें इस सुलह कमेटी को बतानी चाहिये । और विला कमेटी के इत्तला किए किसी किस्म की बातें या अफवाहें न खुद माने न दूसरों में फैलावें । इस कमेटी की तरफ से मुहल्ले २ में बहुत जल्दी हिन्दू मुसलमानों की कमेटियां बनाई जावेगी। अन्त में यह कमेटी सब लोगों को तसल्ली देती है कि इस शहर में न किसी किस्म का झगड़ा होने का अन्देशा था न है।
१ . रामकृष्णराव श्रीखंडे ६.मौलवी चरागुद्दीन
२. भगवानदास सरवैया ७.कादर बख्श
३. केशव रामचंद्र खांडेकर ८. M Ahmed
४. केदारनाथ रोहण ९.शेख अहमद मछरयाई
५. देवेंद्रनाथ मुकुरजी १०.चौ. अब्दुल सत्तार
– मेम्बरान सुलह कमेटी सागर
सागर तारीख २-१०- १९२७ आलकाट छापाखाना सागर



