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भाजपा जिलाध्यक्ष: दावेदारों की धड़कनें बढ़ीं, पहली बार अवसर मिलेगा या नाम होगा रिपीट?

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सागर। भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष का नाम अगले साल यानी 48 घंटे बाद कभी भी एनाउंस हो सकता है। इस पद की दावेदारी को लेकर लगभग उतनी ही खींचतान है, जितनी कि विधानसभा के टिकट को लेकर होती है। सही मायनों में यह उससे ज्यादा है। क्योंकि इस दफा जिले की भाजपा स्पष्ट रूप से दो खेमों में बंटी दिख रही है। खेमे में कौन-कौन यह जग जाहिर है। फिलहाल तो कुछेक नाम हैं जो बीते सप्ताह पार्टी के जिला कार्यालय में हुई रायशुमारी के बाद छन कर बाहर आए हैं। इनमें मुख्य रूप से पूर्व सांसद राजबहादुर सिंह, पूर्व विधायक  विनोद पंथी, हरवंशसिंह राठौर और निवर्तमान जिलाध्यक्ष गौरव सिरोठिया के नाम शामिल हैं। नाम तो वरिष्ठ भाजपा नेता श्याम तिवारी, जगन्नाथ गुरैया, अर्पित पांडे, पूर्व जिलाध्यक्ष जाहरसिंह और वीरेंद्र पटेल के भी हैं। लेकिन ये चलाए जाने वाले या साफ शब्दों में कहें तो डमी टाइप हैं। बहरहाल दावेदारों से लेकर उनके सपोर्टर और प्रस्तावक की धड़कनें बढ़ी हुई हैं क्योंकि वे ये सभी जानते हैं कि बाहर से चुनाव जैसी और भीतर से मनोनयन वाली इस सांगठनिक कवायद में कोई भी बाजी मार सकता है!

सहज स्वभाव वाले पूर्व सांसद पर गुट की छाप भारी 

जिलाध्यक्ष के लिए पूर्व सांसद राजबहादुर की तरफ से भी दावेदारी की गई है। भाजपाई फिजाओं में उनका नाम अहम माना जा रहा है। वे पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ विधायक भूपेंद्रसिंह के खेमे से हैं। यही उनके लिए भारी पड़ता दिख रहा है। इसके बावजूद सरल व सहज उपलब्धता के साथ उन्हें जिले के कम ये कम तीन विधायकों का समर्थन मिलता दिख रहा है। जिनमें पूर्व मंत्री सिंह के अलावा देवरी से विधायक बृजबिहारी पटैरिया, नरयावली से सीनियर विधायक प्रदीप लारिया शामिल हैं। जबकि जिले की भाजपा के अहम नेता, जिसमें केबिनेट मंत्री गोविंदसिंह राजपूत, वरिष्ठ विधायक शैलेंद्र जैन, निवर्तमान प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा उनकी राह में रोड़ा बन सकते हैं।

संगठन का अच्छा अनुभव लेकिन वर्तमान हालात बड़ी चुनौती

रायशुमारी के दौरान बीना से पूर्व विधायक विनोद पंथी का नाम काफी चर्चाओं में रहा। वे सांसद डॉ. लता वानखेड़े की करीबी बताई जाती हैं। वह महिला होने के साथ-साथ संगठन की मंशानुरुप वह अजा वर्ग से भी हैं। उन्हें संगठन का अच्छा अनुभव है। निर्विवाद व गुटबाजी से लगभग दूर हैं। पार्टी बीना को जिला नहीं बनाने की एवज में इस क्षेत्र को संतुलित करने के लिए उनके नाम पर विचार कर सकती है। इसके बावजूद उनकी राह इतनी भी आसान नहीं है। कारण ये है कि पार्टी आलाकमान को यह चिंतन करना है कि दो-ढाई गुटों में बंटी भाजपा के बीच क्या वे संतुलन साध पाएंगीं ? इसके अलावा बीना में उप-चुनाव होने और निर्मला सप्रे के नाम पर विचार नहीं किए जाने की स्थिति में वह एक मुफीद चेहरा भी हैं।

शुभंकर के तमगे के साथ कबीलाई नेतृत्व के भी आरोप 

गौरव सिरोठिया करीब साढ़े चार साल से जिला भाजपा की कमान संभाल रहे हैं। उन्हें एक गुट विशेष ने शुभंकर यानी पार्टी के लिए लकी, का तमगा दे रखा है। उन्हें केबिनेट मंत्री राजपूत, नगर विधायक जैन का समर्थन है। बीते सभी चुनावों में करीब-करीब शत-प्रतिशत रिजल्ट में उनकी भी भूमिका है। रिपीट करने की पॉलिसी में वे प्रदेश के गिने-चुने फिट नेताओं में से एक हैं। इसके बावजूद उन पर भी पार्टी के अंदरखानों में कबीलाई नेतृत्व के आरोप हैं। सीएम के मंच पर वरिष्ठ नेताओं को मंच में उचित सम्मान नहीं दिलाने से लेकर कई विधायकों से कन्नी काट के रखना चर्चाओं में रहता है। कई भाजपाई तो यह तक कहते हैं कि वे केबिनेट मंत्री राजपूत, विधायक जैन, नगर निगम अध्यक्ष वृंदावन अहिरवार व भाजयुमो के जमाने के गिने-चुन संगी-साथियों के अध्यक्ष भर बनकर रह गए हैं। उनकी देवरी विधायक पटैरिया, खुरई विधायक सिंह, यहां तक कि बंडा व बीना विधायक से बहुत हद तक संवादहीनता है। महापौर संगीता सुशील तिवारी और सांसद डॉ. वानखेड़े के लिए भी वे अध्यक्ष मात्र नजर आते हैं।

पीछे बड़ी राजनीतिक विरासत है लेकिन कई साल निष्क्रिय रहे

बंडा के पूर्व विधायक हरवंशसिंह राठौर के पास पिता स्व. हरनामसिंह राठौर की बड़ी राजनीतिक विरासत है। वे सरल, सहज और साधन संपन्न हैं। वे संभवत: इकलौते ऐसे दावेदार हैं। जिनके नाम पर दोनों गुट मूक सहमति दे सकते हैं। सबसे आखिर में पत्ता फेंकने की पॉलिसी वाले पूर्व मंत्री व वरिष्ठतम विधायक गोपाल भार्गव भी उनके नाम पर एनओसी जारी कर सकते हैं। इसके बावजूद राठौर को यह जिम्मेदारी मिल जाएगी। यह इतना आसान नहीं दीखता। कारण ये है कि बंडा विस क्षेत्र से वर्ष 2018 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद उन पर राजनीतिक निष्क्रियता हावी हो गई। जो लगभग अब तक जारी है। 2023 में बंडा से टिकट नहीं मिलने पर यह और बढ़ गई। हालांकि वे गाहे-बगाहे अपने विस क्षेत्र में आते-जाते रहते हैं। बीच-बीच में वह पार्टी के जिलास्तरीय मंचों पर भी दिख जाते हैं। इसके बाद भी उनकी राजनीतिक सरगर्मी इतनी नहीं है कि पार्टी टिकट नहीं देने की सांत्वना स्वरूप उन्हें यह अवसर दे।

31/12/2024

 

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