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स्मार्ट सिटी कंपनी में भी हुआ था 100 करोड़ रु. के फंड के सीएसआर का खेल!

- एचडीएफसी बैंक ने महिला एवं बाल विकास विभाग के 5 करोड़ रुपए अब तक सेंट्रल बैंक को ट्रांसफर नहीं किए

सागर। महिला एवं बाल विकास सागर के करीब  5 करोड़ रुपए अब तक एचडीएफसी बैंक ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के सरकारी खाते में ट्रांसफर नहीं किए हैं। भीतर की खबर है कि बैंक प्रबंधन इस बड़ी रकम को अपने लेजर में दिखाने के लिए फिलहाल ट्रांसफर करने से बच रहा है। महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी बृजेश त्रिपाठी का कहना है कि एचडीएफसी बैंक को एक बार फिर से जिला पंचायत सीईओ का आधार कार्ड दिया है। बैंक का कहना है कि उसे स्कैन कराने के लिए मुंबई स्थित टेक्निकल विंग भेजा गया है। बैंक के अनुसार सीईओ का कार्ड स्केन नहीं हो पा रहा है। इधर प्राइवेट बैंकों की सीएसआर पॉलिसी को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है। सूत्रों का कहना है कि कुछ साल पहले स्मार्ट सिटी कंपनी लिमिटेड में भी इसी तरह से एक खेल किया गया था। जिसमें तत्कालीन अधिकारियों के वारे-न्यारे होने का संदेह है!
चंद दिन बाद 100  करोड़ रुपए एक्सिस बैंक के खाते ट्रांसफर हो गए
शहर के एक सार्वजनिक बैंक के अधिकारी के अनुसार जिस तरह से महिला एवं बाल विकास विभाग में सीएसआर के नाम पर काला-पीला करने की चर्चा है। उसी तरह की घटना हमारे बैंक में भी हुई थी। नाम गोपनीय रखने की शर्त पर इस अधिकारी ने बताया कि स्मार्ट सिटी कंपनी लिमिटेड ने शुरुआती दौर में अपना एक एकाउंट हमारे बैंक में खुलवाया। जिसमें केंद्र से करीब 100 करोड़ रुपए विभिन्न प्रोजेक्ट्स के लिए आए। अधिकारी के अनुसार हम लोग इस बड़ी रकम के खाते में आने से बहुत खुश थे लेकिन चंद दिन बाद देखा तो स्मार्ट सिटी के कतिपय अधिकारियों ने एक्सिस बैंक में एक नया खाता खोल लिया और यह पूरी राशि उसमें ट्रांसफर कर दी। बहुत मुमकिन है कि इसमें भी बैंक प्रबंधन ने सीएसआर पॉलिसी को हथियार बनाकर यह छीना-झपटी की होगी। बता दें कि केंद्रीय वाणिज्यिक एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार शासकीय-अशासकीय व्यवसायिक संस्थान सीएसआर के तहत अपने लाभांश का 5 प्रतिशत तक खर्च कर सकते हैं।
क्या है सीएसआर पॉलिसी, कैसे होती है बड़ी-बड़ी रकम की बंदरबांट
केंद्र सरकार के वाणिज्यिक एवं उद्योग मंत्रालय ने ऐसे सभी व्यवसायिक सरकारी-गैर सरकारी उपक्रमों के लिए कार्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (कार्पोरेट सामाजिक दायित्व) नाम की पॉलिसी बना रखी है। जिसमें उन्हें प्रत्येक वित्त वर्ष में अपने लाभांश का अधिकतम 5 प्रतिशत फंड, जनहित के कामों में खर्च करना होते हैं। यह जनहित के काम पौधरोपण, एंबुलेंस सर्विस, पार्कों में सीट्स, सार्वजनिक पेयजल सुविधा, खेल प्रतियोगिता, सामाजिक जागरुकता अभियान, स्वास्थ्य शिविर, स्कूली बच्चों को यूनिफार्म, स्टेशनरी, स्वास्थ्य संंबंधी उपकरणों का प्रदाय करना आदि हो सकते हैं। सारा खेल इसी सीएसआर के मद में किया जाता है। जानकारी के अनुसार कतिपय व्यवसायिक संस्थान केंद्र सरकार द्वारा तय की खर्च की सीमा को अपने व्यवसायिक हित में भी उपयोग करते हैं। जो सरासर गलत है। उदाहरण के लिए वे इस राशि को किसी फर्जी एनजीओ या खरीद-फरोख्त में खर्च होना बताकर उसे सीधे उस व्यक्ति या संस्था प्रमुख के हवाले कर देते हैं। जो उनके लिए व्यवसायिक रूप से लाभप्रद साबित हो रहा है। प्राइवेट बैंक इसका बहुत अच्छा उदाहरण है। ये बैंक अक्सर, सरकारी सेक्टर के प्रमुख अधिकारियों को इसी फंड से उपकृत कर सरकारी बैंकों से विभिन्न योजनाओं के खाते अपने बैंकों में ट्रांसफर करा लेते हैं। महिला एवं बाल विकास के अंदरखानों की खबर के अनुसार कतिपय बैंकों ने यहां पर जमा राशि के लाभांश का एक प्रतिशत यहां खर्च किया है। मुमकिन है कि यही स्थिति स्मार्ट सिटी की रही हो। जिसकी गहन जांच होना चाहिए।

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