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साहित्यिक चोरी  के आरोपों में घिरे प्रो. जायसवाल संग कुलगुरु डॉ. गुप्ता चार किताबों की सह-संपादक!

विवि प्रशासन ने प्रो. जायसवाल के खिलाफ लगे आरोपों पर न तो अब तक कार्रवाई की न ही क्लीनचिट दी है

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सागर। डॉ. हरीसिंह गौर केंद्रीय विवि के मानव विज्ञान विभाग के एचओडी प्रोफेसर डॉ. अजीत जायसवाल पर बीते साल प्लेगेरिज्म (साहित्यिक चोरी) के आरोप लगे थे। इस बारे में उनके खिलाफ सीबीआई के व्हिसल ब्लोअर अरविंद भट्ट ने जून में एक लंबी-चौड़ी शिकायत मय सुबूत के कुलगुुरु डॉ. नीलिमा गुप्ता से की थी। 9 महीने गुजरने के बाद भी इस शिकायत को लेकर विवि ने अब तक न तो डॉ. जायसवाल के खिलाफ कोई कार्रवाई की है और न ही उन्हें क्लीनचिट दी है। इस मामले में ताजा अपडेट ये है कि जिन कुलगुरु डॉ. गुप्ता को इस मामले की जांच करानी है, वही डॉ. जायसवाल के साथ चार अलग-अलग पुस्तकों में सह-संपादक हैं। इन पुस्तकों का प्रकाशन दिल्ली के किसी पब्लिशर ने किया है। हालांकि डॉ. जायसवाल, डॉ. गुप्ता के अलावा इन किताबों के संपादकीय मंडल में विवि के दो अन्य शिक्षक अनिलकुमार तिवारी, दर्शन शास्त्र व डॉ. शशिकुमार सिंह संस्कृत विभाग भी शामिल हैं। जानकारी के अनुसार हाल ही में इन किताबों का विमोचन प्रयागराज के महाकुंभ में किया गया। पुस्तकों के शीर्षक भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय भाषालोक, मूल्य आधारित शिक्षा और शिक्षा और आत्मनिर्भर भारत, हैं।

2015 व 2016 में प्रकाशित शोध-पत्रों से साहित्यिक चोरी का आरोप लगाया था

ब्हिसल ब्लोअर भट्ट ने जून 2024 में डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के मानव शास्त्र विभाग में पदस्थ डॉ. अजीत जायसवाल के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाए थे। जैसे कि एक आरोप ये था कि प्रोफेसर जायसवाल की परिवीक्षावधि खत्म नहीं होने के बावजूद उन्हें मानव शास्त्र विभाग का एचओडी बना दिया गया। साथ में उन्हें निर्देशक, डोफा (फैकल्टी अफेयर्स) की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी गई जिससे विश्वविद्यालय में शैक्षणिक पदों की नियुक्तियों में घालमेल किया जा सके। डॉ. अजीत जायसवाल पूर्व में पांडिचेरी विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर/रिसर्च एसोसिएट के पद पर कार्यरत थे। उक्त पदों पर कार्यरत रहते हुए उन्होंने शोध नियमावली की धज्जियां उड़ाने व उल्लंघन करने का कार्य किया है। उन्होंने दो विभिन्न शोध पत्र जिनके नाम, ग्लोबल जनरल ऑफ इकोलॉजी और एंथ्रोपॉलाजी (आईएसएसएन 2575-8608, वर्ष-2018) एवं ग्लोबल जनरल आफ एंथ्रोपॉलजी रिसर्च (आईएसएसन 2410-2806, वर्ष-2015) में हू-बहू समान शोध विषयवस्तु, समान आंकड़े एवं तालिकाएं दी हैं। इन दोनों ही पत्रिकाओं में जो क्रमश: 2015 एवं 2016 में प्रकाशित हुई है, में खरवार जनजाति पर समान विषयवस्तु एवं समान आंकड़ों के साथ शोध कार्य को अलग-अलग शीर्षकों में दर्शाया गया है एवं दोनों ही शोध पत्रों की भाषा और वाक्य विन्यास समान है। वर्ष 2015 में प्रकाशित शोध पत्र का शीर्षक ए स्टडी ऑन बॉडी मास इंडेक्स एंड प्रीवेंशन ऑफ क्रोनिक एनेर्जी डिफिसिएन्सी अमंग अडल्ट खरवार ट्राइब्स ऑफ इंडिया है जबकि वर्ष 2018 में प्रकाशित शोध पत्र का शीर्षक नेशनल एंड हेल्थ स्टेटस एवोल्यूशन ऑफ ट्राइब्स ऑफ उत्तर प्रदेश एन एंथ्रोपोलीजिकल डाइमेन्शन है।प्रोफेसर अजीत जायसवाल द्वारा कारित यह कृत्य धोखेबाजी, जालसाजी एवं शोध नियमों के उल्लंघन के अंतर्गत आती है। ऐसे कार्य करने वाले प्रोफेसर अजीत जायसवाल को विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य हेतु रखना सरासर वैधानिक नियमों की अनदेखी करना है।

प्लेगेरिज्म का संबंध संपादन से नहीं

प्रकाशित पुस्तकें संपादित पुस्तकें हैं जिनके लेख विभिन्न लेखकों द्वारा लिखे गए हैं। कुलपति महोदया एवं अन्य संपादकों द्वारा पुस्तक के लिए प्राप्त लेखों का केवल संपादन किया गया है जो संयुक्त रूप से किया गया है. इस तरह से किये गए संपादन कार्य में प्लेगरिज्म का सम्बन्ध संपादक से नहीं होता है।

 –डॉ. विवेक जायसवाल, पीआरओ, डॉ.हरी सिंह गौर केंद्रीय विवि सागर

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