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वाह डॉ. साहब वाह…. ऐसे थोड़े होगी गुरुवर की “अनुकंपा”

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सागर। दोस्तो… शहर और खास कर कोतवाली थाना क्षेत्र में क्या चल रहा है इसकी जानकारी नहीं हो तो पत्रकार भाई ब्रह्मदत्त दुबे उर्फ बीडी का यू ट्यूब चैनल “सागर एक्सप्रेस” और बड़े भाई विनोद आर्य का तीनबत्ती डॉट कॉम ओपन कर लें। सारा सीन समझ आ जाएगा। जगह- जगह खुल्ला  वीडियो भी पड़े हैं। उन्हें देख लें। अपन तो बात करेंगे इन वीडियो के सीन्स के डॉयरेक्टर की…उन डॉक साब की जो मंदिर बनाओ… मंदिर बनाओ…. के जरिए गुरुवर की “अनुकंपा” पाने की कोशिश कर रहे हैं। डॉक साब कुछ साल पहले लोकायुक्त पुलिस के लपेटे में आकर भी बच गए थे। शायद उसी समय उन्होंने मनौती मांग ली हो कि हे प्रभु… हे प्रेमानंद…। एक बारगी “बाहर” निकाल लो। मैं… मंदिर- मढ़िया तोड़ कर भी आपका मंदिर बनवाऊंगा। चर्चा है कि तीन- चार दिन से मानव सेवा के ये “मनीषी” जेवरात बनाने वालों से चर्चा का अभिनय कर रहे थे और दूसरी तरफ उनके नौजवान मैदान में “एक्ट” करने की तैयारी में जुटे थे। आखिर में हुआ वही जो स्क्रिपेटेड था। बड़ा बाजार रोड पर मढ़िया तोड़ी गई। हल्ला भी मचा। यहां बारीक करेंगे कि …..  इन लोगों ने फिि रवही किया जो एक तबका विशेष करता है। महिलाओं को आगे करो और केस बनवाओ। जाने किस के आदेश- निर्देश पर मोराजी तरफ से एक भीड़ कोतवाली की तरफ आ गई। आखिर – आखिर तक माहौल ऐसा हो चला कि बड़ा बाजार के दूसरे इलाकों में देर रात तक पत्थरबाजी होती रही। कोई समुंदर पार का रहने वाला देखता तो जरूर यह बोलता कि लगता है….. यहां भी यहूदी और मसीही वाली या शिया सुन्नी टाइप का विवाद चल रहा है।

किस-किस का नाम लूं…. “उसे” हर किसी ने मारा

इस कांड ने” उसे” मतलब विश्वास, सौहार्द्रता, आपसी समझ आदि सभी को मारा है। जिसके लिए जनप्रतिनिधि, पुलिस, प्रशासन वगैरह सब जिम्मेदार हैं। वोट के लिए भगिनी- बंधु माने भाई- बहन बोल- बोल कर चार दफा राजधानी पहुंचने वाले इस मामले में एकदम से चुप्पी साध गए। भाजपा जिलाध्यक्ष के मनोनयन का बहाना नहीं चलेगा। क्योंकि ये बवाल कम से कम 15 दिन पुराना है। 3 दफा विवाद हो चुका है। आप चाहते तो समय रहते सब सुलझ सकता था। लेकिन रुचि नहीं ली। जाने क्या दबाव था ? पुलिस की ओर से टीआई भी दायरे में लिए जाएंगे। क्यों वे मात्र 33 कदम दूर इस तीसरे घटनाक्रम को रोक नहीं पाए। इसलिए क्यों न उन पर जात-बिरादरी का पच्छ लेने का आरोप लगाया जाए। हालांकि इनसे भी आगे इनके बॉस निकले। जो तीन घंटे से ज्यादा चले इस कोहराम में एक दफा भी सामने नहीं आए।

हरा- नारंगी होता तो जाने क्या होता ?

ये विषय- टंटा सनातन की दो ब्रांचों का है। लेकिन ये उग्र होगा। किसी ने नहीं सोचा था। तसव्वुर (कल्पना) कीजिए। यही मसला हरे रंग और संतरी माने भगवा में हो जाता? तब तो पुलिस की ये “कार्य प्रणाली और सजगता” इस भरी ठंड में जाने कितने घर- दुकान को अलाव बनवा डालती ? यहां धिक्कार है ऐसे देश भक्ति-जनसेवा वालों पर जो किसी व्यक्ति या समुदाय विशेष के दबाव में लोगों के जीवन और सुरक्षा को संकट में डाल रहे हैं। इसमें नेता नगरी का भी नाम शामिल है।

मंदिरों से कहीं ज्यादा जरूरी भरोसा है…. वरना वे ठीक ही कहते हैं

बनाइए- बनाइए….. हर गली सड़क और मुहल्ला में मंदिर बनाइए। जगह नहीं बचे तो फोरलेन पर मंदिर बनाइए। कोई भी तो नहीं रोक रहा। लेकिन इतनी गुंजाइश तो रखिए कि आपकी दुकान से हम सुबह आटा-दाल लें तो आप अन्थऊ कर सीधे हमारे पास दूध लेने चले आएं। या कि कभी आपके घर के बाहर हड्डे-गुड्डे पड़े दिखें तो आप बेखटके हम से मदद मांग लें। वरना….. वरना तो शहरी मुखिया की ही बात सही है। जो आपके चुनावी “योगदान” के अनुसार आपको ” स्पेशियली” ट्रीटमेंट दे रहे हैं। गौर कीजिएगा…..!

05/01/2025

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